चार साल बाद भी मैं आज भी अचंभित हूँ कि श्रीमान नरेंद्र मोदी ने ऐसा कौन सा पहाड़ तोड़ा है कि सोशल भक्तों की संख्या कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ रही है। समझ नही आता कि आज तक पिछले सत्तर सालों के कुशासन की दुहाई देने वाले आज इतना कैसे फ्री हो गए रोज़ी रोटी के चक्करों से की सोशल मीडिया पर बकचोदी करने का समय मिलने लगा इन्हें? रही बात बकचोदी की तो वो तो मैं भी करता हूँ परंतु, यह पिछले चार साल में नही शुरू की, न ही भक्ति करने के लिए करता हूँ, बस चार बातें कह कर बहती गंगा में हाथ धो लेता हूँ। समझ नही आता कि इतनी देश भक्ति कहां से उग आई? जो नासपीटे आज तक यह नही जानते कि भारत की आज़ादी काब मिली थी, जो नासपीटे यह नही जानते कि किन किन लोगों ने आज़ादी दिलवाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया है, जो नासपीटे आज तक राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत में फर्क नही बात सकते वो देश भक्ति की बकचोदी कर रहे है सोशल मीडिया पर।
हाँ रही भक्तों को बात, मुझे आज तक समझ नही आया कि पिछले चार सालों में ऐसा क्या बदला की 9 घंटे की नौकरी, 4 घंटे का सफर, 2 घंटा सुबह तैयार होने और शाम को ऑफिस से आ कर आराम करने और बचा हुआ समय बीवी की किचकिच सुनने में निकालने वाला आम आदमी, जिसकी आम ज़रूरतें पूरी नही हुईं पिछले सत्तर सालों में, अचानक से कौन सा अलादीन का चिराग पा गया मोदी के रामराज में की उसको अपने नित्य कर्मों के अलावा भी इतना समय मिलने लगा कि सोशल मीडिया पर मोदी के गुणगान करने लगा, जैसे 2019 में मोदी फिर चुन कर आएंगे तो हनुमान जी की तरह पहाड़ तोड़ कर ला कर दे देंगे, हर आम आदमी को अपना खुद का एक पर्सनल पहाड़, लो जअपनी संजीवनी बूटी खुद ढूंढ लो। अब वह आपके ऊपर है कि आप मृत संजीवनी ढूंढते हो, रामायण वाली या बाबाजी की बूटी, सावन वाली।
वैसे पहाड़ ला कर देने वाली बात श्री अमित शाह जी ने पिछले चुनाव में की थी, 14-15 लाख जो हर भारतीय के बैंक एकाउंट में आने वाले थे। इसी के चलते मैं भी लगा था जनधन एकाउंट खुलवाने की कतार में। क्या बताऊँ, बहुत फजीहत हुई। सोचा था कि 15 लाख मिल जाएगा तो कॉर्पोरेट लाइफ से त्यागपत्र दे कर गांव चला जाऊंगा, हल जोतने नही, वो तो बैल करता है, बल्कि चैन की ज़िंदगी जीने, क्योंकि तीन हज़ार रुपये महीना कमा कर दिल्ली जैसे शहर में तो गुज़रा होगा नही, और 15 लाख रुपये बैंक में रख कर हर महीने तीन हज़ार रुपये से ज़्यादा मिलेगा नही, थैंक्स टू पब्लिक सेक्टर बैंक्स, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया - हर (*&^#¿%@) भारतीय का बैंक।
बैक टू द स्टोरी, 15 लाख तो मिला नही, आज भी राह देख रहा हूँ, यह जानते हुए भी की वह चुनावी जुमला था, और जुमले कभी पूरे नही होते। तो भक्तों, हर विरोधी पार्टी का यह कहना है कि बीजेपी का सोशल मीडिया सेल है इनके पीछे, और बीजेपी का सोशल मीडिया सेल कहता है कि कांग्रेस और आप और अन्य पार्टियों के भी सोशल मीडिया सेल्स हैं। भक्तों उठो और देखो आप भक्ति किसकी कर रहे हो? आजकल कर्म करने से पहले फल की चिंता कर लेनी चाहिए, क्या पता कर्म करने के बाद आपके पास undo या delete का option न हो, और फिर कर्म कर लिया है तो फल खाना ही पड़ेगा।
वैसे भी विकास अभी तक पैदा न हो सका है। मैं आज भी उसी भारतिय रेल में सफर कर रहा हूँ जिसमे बचपन में किया करता था, वह आज भी उतना ही लेट होती है जितना पहले होती थी। बस फर्क इतना पड़ा है कि किराये बढ़ गए हैं, और पहले पिताजी टिकट के पैसे देते थे,अब मैं देता हूँ। अब आई.आर.सी.टी.सी हमे बात देती है कि हमारे किराये का बोझ 47% भारतिय उठा रहे हैं। साहब क्या करूं? ट्रैन में सफर करना बंद कर दूं? पैदल जाऊं कहीं पर? हवाई उड़ान तो "हमसे न होगा"। और ऐसे भ्रष्ट नेताओं का बोझ जो देश की आम जनता वहन कर रही है, पिछले सत्तर सालों से? उसका क्या?
बाकी हाँ, भक्तों को खुश करने के लिए,
हर हर मोदी, घर घर मोदी।
और
मोदी लाओ देश बचाओ
वरना मैं कहीं गाय चोर घोषित हो गया तो?
हाँ रही भक्तों को बात, मुझे आज तक समझ नही आया कि पिछले चार सालों में ऐसा क्या बदला की 9 घंटे की नौकरी, 4 घंटे का सफर, 2 घंटा सुबह तैयार होने और शाम को ऑफिस से आ कर आराम करने और बचा हुआ समय बीवी की किचकिच सुनने में निकालने वाला आम आदमी, जिसकी आम ज़रूरतें पूरी नही हुईं पिछले सत्तर सालों में, अचानक से कौन सा अलादीन का चिराग पा गया मोदी के रामराज में की उसको अपने नित्य कर्मों के अलावा भी इतना समय मिलने लगा कि सोशल मीडिया पर मोदी के गुणगान करने लगा, जैसे 2019 में मोदी फिर चुन कर आएंगे तो हनुमान जी की तरह पहाड़ तोड़ कर ला कर दे देंगे, हर आम आदमी को अपना खुद का एक पर्सनल पहाड़, लो जअपनी संजीवनी बूटी खुद ढूंढ लो। अब वह आपके ऊपर है कि आप मृत संजीवनी ढूंढते हो, रामायण वाली या बाबाजी की बूटी, सावन वाली।
वैसे पहाड़ ला कर देने वाली बात श्री अमित शाह जी ने पिछले चुनाव में की थी, 14-15 लाख जो हर भारतीय के बैंक एकाउंट में आने वाले थे। इसी के चलते मैं भी लगा था जनधन एकाउंट खुलवाने की कतार में। क्या बताऊँ, बहुत फजीहत हुई। सोचा था कि 15 लाख मिल जाएगा तो कॉर्पोरेट लाइफ से त्यागपत्र दे कर गांव चला जाऊंगा, हल जोतने नही, वो तो बैल करता है, बल्कि चैन की ज़िंदगी जीने, क्योंकि तीन हज़ार रुपये महीना कमा कर दिल्ली जैसे शहर में तो गुज़रा होगा नही, और 15 लाख रुपये बैंक में रख कर हर महीने तीन हज़ार रुपये से ज़्यादा मिलेगा नही, थैंक्स टू पब्लिक सेक्टर बैंक्स, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया - हर (*&^#¿%@) भारतीय का बैंक।
बैक टू द स्टोरी, 15 लाख तो मिला नही, आज भी राह देख रहा हूँ, यह जानते हुए भी की वह चुनावी जुमला था, और जुमले कभी पूरे नही होते। तो भक्तों, हर विरोधी पार्टी का यह कहना है कि बीजेपी का सोशल मीडिया सेल है इनके पीछे, और बीजेपी का सोशल मीडिया सेल कहता है कि कांग्रेस और आप और अन्य पार्टियों के भी सोशल मीडिया सेल्स हैं। भक्तों उठो और देखो आप भक्ति किसकी कर रहे हो? आजकल कर्म करने से पहले फल की चिंता कर लेनी चाहिए, क्या पता कर्म करने के बाद आपके पास undo या delete का option न हो, और फिर कर्म कर लिया है तो फल खाना ही पड़ेगा।
वैसे भी विकास अभी तक पैदा न हो सका है। मैं आज भी उसी भारतिय रेल में सफर कर रहा हूँ जिसमे बचपन में किया करता था, वह आज भी उतना ही लेट होती है जितना पहले होती थी। बस फर्क इतना पड़ा है कि किराये बढ़ गए हैं, और पहले पिताजी टिकट के पैसे देते थे,अब मैं देता हूँ। अब आई.आर.सी.टी.सी हमे बात देती है कि हमारे किराये का बोझ 47% भारतिय उठा रहे हैं। साहब क्या करूं? ट्रैन में सफर करना बंद कर दूं? पैदल जाऊं कहीं पर? हवाई उड़ान तो "हमसे न होगा"। और ऐसे भ्रष्ट नेताओं का बोझ जो देश की आम जनता वहन कर रही है, पिछले सत्तर सालों से? उसका क्या?
बाकी हाँ, भक्तों को खुश करने के लिए,
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