Tuesday, July 31, 2018

प्रोविडेंट फण्ड

अत्यंत भारी मन से राकेश जी घर की ओर जा रहे थे। आज मन कुछ अजीब सा हो रहा था, मानो ख़ुशी जैसी चीज़ से दो-चार हुए बरसों हो गए हों। अपने ख्यालों में खोये हुए राकेश जी घर से कुछ आगे निकल गए थे, मानो उनको घर जाना ही न था। सामने से आते हुए मिश्रा जी, ने राकेश जी को गुमसुम जाते देख मिश्रा जी से रहा न गया और वह राकेश जी को टोक बैठे। राकेश जी, कैसे हैं? उधर किधर जा रहे हैं? अचानक आई इस आवाज़ ने राकेश जी को अचंभित कर दिया। उन्होंने सिर उठा कर देखा तो मिश्रा जी सामने खड़े थे। उनको नमस्कार करते हुए राकेश जी उनकी तरफ़ मुड़े। फिर अचानक से रुक गए मानो अभी-अभी उन्हें एहसास हुआ हो कि वह गलत राह पर जा रहे थे। फिर कुछ सोचते हुए मिश्रा जी के पास पहुंचे। मिश्रा जी भांप गए थे कि राकेश जी किसी विडंबना में है। खैरियत पूछ थोड़ी बहुत इधर-उधर की बात की उसके बाद पूछ बैठे कि राकेश जी बहुत परेशान नजर आ रहे हैं ठीक-ठाक है। राकेश जी ने अपनी परेशानी को छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए हाँ मे सिर हिलाया और चेहरे पर एक अधूरी सी झूठी हंसी लाते हुए यह दिखाने की कोशिश की कि जैसा मिश्राजी सोच रहे हैं वैसा कुछ न था। फिर भी मिश्रा जी राकेश जी को पिछले 15 वर्षों से जानते थे और घनिष्ठ मित्रता न होने के बावजूद भी वह भांप सकते थे कि राकेश जी परेशान है और यह भी जानते थे कि वह अपनी परेशानी किसी और को न बताने की हर संभव कोशिश करेंगे। मिश्रा जी ने सोचा कि राकेश जी ऐसे नहीं बताएंगे तो उनसे बातों-बातों में चालाकी से उनकी परेशानी का कारण निकलवाना पड़ेगा आख़िर थे तो वह राकेश जी के पड़ोसी ही और एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा? दोनों एक साथ अपने घर की तरफ चल दिए। घर के सामने पहुंचकर घर का द्वार खुला दिखा तो मिश्रा जी ने राकेश जी को भीतर आकर कुछ चाय नाश्ता करने का आग्रह किया। वह यह भी जानते थे की राकेश जी ऐसे नहीं मानेंगे सो उनको जबरदस्ती अपने घर ले गए और मिश्राइन से कुछ चाय नाश्ता लाने का आग्रह किया मिश्राइन अंदर नाश्ता लाने के लिए गए थे मिश्रा जी ने राकेश जी से आखिर पूछ ही लिया - राकेश जी आप कुछ परेशान से नजर आ रहे हैं सब खैरियत तो है? यह सुनकर राकेश जी कुछ सकपका गए हाँ मे सिर हिलाते हुए उन्होंने मिश्रा जी से कहा कि सब ठीक है। लेकिन मिश्रा जी राकेश जी के चेहरे पर झलकती हुई परेशानी को साफ़ देख पा रहे थे आखिरकार वह राकेश जी के पास गए और उनके हाथों पर हाथ रखकर कहा की राकेश जी भले ही हमारे सम्बन्ध घनिष्ठ न हों लेकिन हैं तो हम पड़ोसी ही और पड़ोसी पड़ोसी काम नहीं आएगा तो कौन आएगा। आपकी जो भी परेशानी है मुझसे साझा करें और फिर देखते हैं हम क्या कर सकते हैं।

आखिरकार यह बात सुनकर राकेश जी को थोड़ी उम्मीद की किरण नजर आई लेकिन फिर भी वह अपनी परेशानी मिश्रा जी से साझा करने में संकोच कर रहे थे मिश्रा जी ने राकेश जी पर ज़्यादा दबाव डालना ठीक नहीं समझा। न जाने कैसी परेशानी है। यह भी पता नहीं था कि राकेश जी आपकी परेशानी साझा करना चाहते थे या नहीं। इतने में मिश्राइन जलपान का प्रबंध करके सामने आ गई। मेज़ पर जलपान रखकर अपने लहजे में मिश्राइन ने राकेश जी की खैरियत पूछ कहा कि भाई साहब रमा से तो फिर भी हर रोज़ मुलाकात हो ही जाती है आप कभी आते ही नहीं। ऐसे ही कुछ देर बात करने के बाद मिश्राइन अपने घर के कामों में लग गयीं। जलपान गृहण करने के बाद राकेश जी को न जाने क्यों ऐसा लगा कि वह अपनी परेशानी मिश्रा जी को बता सकते थे कुछ देर इधर-उधर की बातें की काम वगैरह को लेकर और अन्य पड़ोसियों के हाल-चाल वगैरह। उसके बाद राकेश जी ने सोचा रहा कि यह सही मौका है मिश्रा जी से अपनी परेशानी साझा करने का। बोल बैठे मिश्रा जी आप तो जानते ही हैं प्रेरणा अब बड़ी हो चुकी है और शायद आप भी जानते हो कि हम उसकी शादी के बारे में सोच रहे हैं इस सिलसिले में कई लोगों से मिला। काफी अच्छे लोग भी मिले जो हर तरह से प्रेरणा के लिए उपयुक्त थे। जब लगा की सब अच्छा हो रहा है तो मैंने अपने मैनेजर साहब से इस बारे में बात भी की। आखिर कमा किसके लिए रहा था एक बेटी और एक बेटा। यही तो मेरे सब कुछ हैं। चाहता था की बेटी की शादी अच्छे घर में धूमधाम से करूं इसीलिए मैनेजर साहब से बात होने के बाद उनके कहने पर मैंने अपने प्रोविडेंट फंड की राशि में से कुछ राशि काटकर मुझे देने का आग्रह किया। मैनेजर साहब ने पहले ही बताया था यह थोड़ा लंबा काम है और इसमें दो-तीन महीने का वक्त लग सकता है इसलिए छह महीने पहले मैंने इस सिलसिले में एक अर्ज़ी लगाई थी। आज उस अर्ज़ी का जवाब आ गया। कहते हैं कि प्रोविडेंट फंड का पैसा कर्मचारी को रिटायर होने के बाद ही दे सकते हैं उससे पहले कुछ नहीं मिल सकता है। इसलिए मैं नहीं चाहता था की प्रेरणा शादी तय होने के बाद मैं इस में फसूँ। न जाने कितना वक्त ले ले इसलिए उस सिलसिले में मैंने छह महीने पहले एक अर्जी लगाई थी सोचा था दो-तीन महीने की जगह चार-पांच महीने भी लगें तो भी मेरी बिटिया की शादी मैं पैसे की वजह से कोई अड़चन नहीं आएगी।

अर्ज़ी का आज जवाब आ गया जवाब में वह लोग कहते हैं कि कर्मचारी के प्रोविडेंट फंड का पैसा उसके रिटायर होने से पहले नहीं दिया जा सकता है कोई भी यह बात सुनने को तैयार नहीं है की कर्मचारी पैसा जमा किसलिए करता है जब उसे पैसे की जरूरत हो तो उसे मिले ही ना। आखिरकार अपने आग्रह का जवाब पढ़कर टूट गया मैनेजर साहब के पास गया तो उन्होंने थोड़ा सा ढांढस बंधाया और कहा के देखता हूं मैं क्या कर सकता हूं। अब उनका सहारा है फिर कभी-कभी यह डर भी लगता है जब मेरी अर्जी खारिज हो गई मैनेजर साहब का भी दायरा और शक्ति सीमित ही है। फिर भी कुछ उम्मीद तो है ही उन्होंने मुझे फिर से अर्जी लगाने को कहा है और यह भी कहा है कि इस बार मेरी अर्जी के साथ वह अपनी सिफारिश भी भेजेंगे क्या पता उन की सिफारिश से काम बन जाए। अगर फिर भी नहीं हुआ तो मजबूरन मुझे अपनी नौकरी छोड़ देनी पड़ेगी। आखिर और कर भी क्या सकता हूं पैसा चाहिए नौकरी छोड़नी ही पड़ेगी और कोई जमा पूंजी तो है नहीं मेरे पास जो भी कमाया या तो घर गृहस्थी के खर्चों में लग गया या फिर बच्चों की पढ़ाई लिखाई और उन्हें सक्षम बनाने में खर्च कर दिया। जो थोड़ा बहुत बचा उसे कंपनी की तरफ से प्रोविडेंट फंड में जमा कर दिया गया अब जब मुझे कुछ पैसे की जरूरत है तो यह कहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद ही मिलेगा।